पोस्टपार्टम थायरॉइडाइटिस को जान लें
अक्सर मां बनने के बाद महिलाओं को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ऐसी ही एक समस्या है- ‘पोस्टपार्टम थायरॉइडिटिस’, जिसमें थायरॉइड ग्रंथि में सूजन आने लगती है
प्रसवोत्तर (पेस्टपार्टम धायरॉइडिटिस वाली 20 से 30 प्रतिशत महिलाओं में हाइपरथायराइडिज्म का विशिष्ट क्रम होता है, जो आमतौर पर प्रसव के एक से चार महीने बाद शुरू होता है और दो से आत सप्ताह तक रहता है। इसके बाद हाइडिज्म होता है, जो दो सप्ताह से छह महीने तक रहता है, उसके बाद रिकवरी कुछ महिलाओं में केवल हाइपरथायराइडिज्म या केवल डि होता है हाइपरथायराइडिज्म में थकान, वजन घटने दिल की धड़कन बढ़ने, गर्मी लगने जैसी समस्या आती है या फिर चिंता, चिचिहान और कंपकंपी होम में कर्जा की कमी, ठंड, पराहट, कला, सुस्ती और शुष्क त्वचा की परेशानी होती है।
हाइपरथायरॉइड परीक्षण की विधि :
प्रसवोत्तर अवधि में ऐसी महिलाओं में सिर्फ टीएसएच के बजाय टीएसएच और मुक्त टी4 को मापा जाता है। प्रसवोत्तर थायरॉइडिटिस के दौरान थायरॉइड फंक्शन परीक्षण में उतार-चढ़ाव हो सकता है और टीएसएच सांद्रता में परिवर्तन सीरम मुक्त टी4 में परिवर्तन के बाद होता है। यदि टीएसएच कम है तो टीउ भी मापा जाता है।
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हाइपरथायरॉइड ka कैसे होता है मूल्यांकन
प्रसवोत्तर हाइपोथायरॉइडिज्म के रोगियों के लिए एंटीथायरॉइड पेरोक्सीडेज एंटीबॉडी का मूल्यांकन प्रसवोत्तर थायरॉइडिटिस की पुष्टि में सहायक हो सकता है और भविष्य में इसके होने की आशंका के बारे में अनुमान लगाए जा सकते हैं। प्रसवोत्तर हाइपरथायरॉइडिस्म के रोगियों को बाद में पोस्टपोर्टम थायरॉइडिटिस और ग्रेव्स डिजीज के बीच में अंतर पता करने के लिए मूल्यांकन की जरूरत होती है। जब ग्रेव्स रोग (नेत्र रोग) की क्लीनिकल मेनिफेस्टेशन हो, लगातार या गंभीर हाइपरथायरॉइडिस्म हो तो रेडियो आयोडीन अपटेक प्राप्त किया जाता है। इस तरह के क्लोनिकल मेनिफेस्टेशन को अनुपस्थिति में अतिरिक्त परीक्षण प्राप्त नहीं किए जाते हैं, लेकिन तीन से चार सप्ताह में थायरॉइड फंक्शन परीक्षण दोहराए जाते हैं। इतने समय तक प्रसवोत्तर थायरॉइडिटिस वाले अधिकांश रोगियों में सुधार हो जाता है, जबकि ग्रेव्स हाइपरथायराइडिज्म के रोगी आमतौर पर उससे अवस्था में रहते हैं या हालात कुछ बिगड़ सकते हैं।
हाइपरथायरॉइड स्क्रीनिंग :
जिन रोगियों में प्रसवोत्तर थायरॉइडिटिस के ज्यादा खतरे होते हैं, उन्हें प्रसवोत्तर थायरॉइडिटिस (ग्रेड 2सी) जांच कराने का सुझाव दिया जाता है। आमतौर पर प्रसवोत्तर के तीन और छह महीने के टीएसएच स्तर को मापा जाता है। यदि टीएसएच स्तर असामान्य है तो टी4 स्तर और टीउ (यदि टीएसएच कम है) स्तर की जांच एक से दो सप्ताह के भीतर दोहराई जाती है।
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हाइपरथायरॉइड चरण में रोगी को उपचार इलाज भी जान लें
हाइपरथायरॉइड चरण में रोगी को उपचार की जरूरी नहीं होती है। इसके ठीक होने की पुष्टि के लिए थायरॉइड परीक्षण चार से आठ सप्ताह में दोहराया जाता है। जिन रोगियों में लक्षण दिखाई देते हैं, उनमें तेज धड़कन या कंपकंपी को दूर करने के लिए बीटा ब्लॉकर्स उपयोगी हो सकते हैं। यदि महिला स्तनपान कराती है तो प्रोपेनोलोल को प्राथमिकता दी जाती है। हाइपोथायरॉइड चरण में बड़े टीएसएच वाले रोगी को टी4 (लेवोथायरोक्सिन) के साथ उपचार दिया जाता है। टीएसएच स्तर वाले लक्षणहीन रोगों को टी4 का स्तर मापने (ग्रेड 2सो) का सुझाव दिया जाता है। आमतौर पर 6 से 12 महीनों के बाद टी4 को बंद कर दिया जाता है, जब तक कि महिला गर्भवती न हो, गर्भावस्था का प्रयास कर रही हो या स्तनपान करा रही हो। अधिकांश रोगी ठीक हो जाते हैं और प्रसवोत्तर एक वर्ष के भीतर यूथायरॉइड हो जाते हैं। प्रतिवर्ती हायपोथायराइडिज्म वाले रोगियों में भविष्य में स्थायी हाइपोथायरॉइडिज्म विकसित होने का खतरा रहता है, इसलिए टीएसएच की वार्षिक निगरानी की जरूरत होती है।